वाराणसी दुनिया का सबसे प्राचीनतम बसे हुए शहरों में एक और भारत का सबसे पुराना बसा हुआ शहर है। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का यह सबसे प्रसिद्ध नगर है। इसे ‘बनारस’ और ‘काशी’ भी कहा जाता हैं। हिन्दू धर्म में पवित्र नगरों में से इस शहर को सबसे ज्यादा मान्यता दिया जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी वाराणसी शहर को पवित्र माना जाता है। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी, श्री कशी विश्वनाथ मन्दिर और इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। यह शहर हजारों सालों से भारत का, बिशेष रूप से उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है।
वाराणसी को अक्सर ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’, ‘भगवान शिव की नगरी’, ‘दीपों का शहर’ और ‘ज्ञान नगरी’ आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है।
अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन ने लिखा है की “बनारस इतिहास से भी बहुत ज्यादा पुरातन है, परंपराओं से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब ये सबको एकत्र कर दिया जाए तो उस से भी दोगुना प्राचीन नागरी है।”
भारतीय शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में उत्पन्न एवं विकसित हुआ है। भारत के बहुत सारे दार्शनिक, कवि, लेखक और संगीतज्ञ वाराणसी में ही रहे हैं, जिनमें की कबीर दास, पंडित रवि शंकर, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, वल्लभाचार्य, रविदास, शिवानन्द गोस्वामी, स्वामी रामानंद, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, गिरिजा देवी, त्रैलंग स्वामी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने तो हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं पर लिखा था और गौतम बुद्ध ने प्रथम प्रवचन यहीं पर सारनाथ में दिया था।
वाराणसी में चार बड़े-बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं जैसे की संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, , महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ । यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी भी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है।
बनारस को कितने नाम से जाना जाता है? (Varanasi ko kis nam se jana jata hai)
इसे ‘बनारस’ और ‘काशी’ भी कहा जाता हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है।
बनारस के राजा कौन थे?
बनारस के तत्कालीन महाराजा विभूतिनारायण सिंह अपनी रियासत के भारत के साथ रहने के लिए समझौते पर लगभग 15 अगस्त 1947 तक हस्ताक्षर कर दिए थे. बनारस का पूरा इतिहास भारत क सबसे पुराने और धार्मिक ग्रंथों मे काशी का जिक्र मिलता है।
वाराणसी का नाम बनारस क्यों रखा गया?
कहा यह भी जाता है की ‘वाराणसी’ नाम वरुणा नदी और असी घाट पर इस नगरी का नामकरण हुआ था। कीथ के अनुसार वरुणा नदी का जिक्र अर्थर्ववेद के मंत्र में है जो की – वारिद वारयातै वरुणावत्यामधि। है।
बनारस का पहला राजा कौन था?
देव दीपावली मनाए जाने के बारे में बहुत सारी पौराणिक मान्यताएं और कथाएं भी प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार काशी के सबसे प्रथम राजा दिवोदास ने अपने राज्य में सभी देवताओं के प्रवेश पर रोक लगा दी थी लेकिन कार्तिक मास में पंचगंगा घाट पर स्नान करने और उसके महात्म्य का लाभ लेने देवता भी छिप कर यहां आते थे । उसके बाद फिर देवताओं ने राजा दिवोदास को समझ कर अपने ऊपर लगा प्रतिबंध हटवा लिया।
काशी के 3 नाम क्या हैं?
काशी के तीन नाम ये है:- काशी, वाराणसी और बनारस पर रेलवे स्टेशन का नाम भी हैं।
[ Conclusion ]
हमे उम्मीद है कि आप हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें होंगे और इस लेख के माध्यम से जान चुके होंगे कि वाराणसी का नाम बनारस कैसे रखा गया था.अगर आपके मन में अभी भी बनारस से जुड़ा कोई सवाल है तो आप comment box में पूछ सकते हैं हमारी समूह आप के हर एक सवालों का जवाब आपको बताने की कोशिश अवश्य करेगी धन्यवाद ।